रविवार, 31 जनवरी 2021

अराजकता _बंद _करो

ना भर सकेगा घाव सदियों  

तक जो  मिला है तुमसे 

नहीं करूंगी माफ अराजकता 

तेरी ना करना आस मुझसे 

तुम थे लाल जिनसे थी 

गोद हरी उजड़ी है तुमसे 

लङूंगी कैसे आतंक गद्दार 

और विदेशी आक्रांत से 

के मेरे लाल ने ही कर दिया 

छलनी मिली वेदना ऐसी तुमसे

यही थे क्या जय जवान तेरे 

पूछ रही सारी दुनिया मुझसे

लिए अश्रु शर्मिन्दा हुँ मैं खुद से 



अराजकता _बंद _करो

आज हुई रक्त आंखें अपने ही रक्त से 

उतरा रक्त आंखों में अपने ही खंजर से

बंद करो अराजकता जो फैली लालकिला प्राचीर से 

होना सावधान तुम थे जो लाल प्रिय सबसे 

नहीं बचोगे अब तुम सिंहनी के शावकों से

नहीं हुई है खाली गोद मेरी वीर सपूतों से 

बना रहे जो मुझे विश्व गुरु बचना उन वीरों से 

छिन्न भिन्न हुआ अभिमान गिरी है आन तुमसे

नहीं माफ होगी अराजकता जलोगे कोप अग्नी से 

तुम जलोगे स्वयं अपनी पश्चाताप ज्वाला से



  हुए लज्जाहीन किया शर्मसार मुझे 
रहती थी गोद हरी तुमसे 
किया तुमने बंजर मुझे 
तुम हुए आतंकवादी 
हुए विदेशी आक्रांत 
रूह कांपती जिन्हे सोचकर
तुम हुए वो गद्दार
बंद करो अराजकता हुई मैं पानी पानी 
नहीं अब सुरक्षित लाज लालो ने छीनी
नहीं निकले कभी अश्रु पीड़ा सहकर 
देन सपूतों की बह निकला रक्ताभ सागर 
बनने जा रही थी विश्व गुरु 
तुमने गिराया धरा पे 
तार-तार की गरिमा मेरी 
छीना अभिमान मुझसे





बुधवार, 27 जनवरी 2021

जिन्दगी

जिंदगी तूने बहुत एहसान किया 🌹

सांसो के खर्च पे जीने का मजा दिया

यह सांसे भी मिली है तुझसे ही

मैंने तो इसका भी कर्म ना किया

तू नहीं कम मुझे ईश्वर से कभी🌹

मांगने से पहले ही मुझे सब दे दिया

ना जान पाती मै ईश्वर को कभी 🌹

उनका अनुभव भी तेरे कारण किया

इतने रिश्ते दिए जन्म से ही मुझे🌹

हर रिश्ते का सुख भरपूर तूने दिया

ये एहसान भी तो तूने ही मुझ पर किया 

जिंदगी के लिए तूने मुझे चुन लिया🌹

@veena_mawar



सोमवार, 25 जनवरी 2021

मैं और तुम

निकली हूं खुद को ढूंढने कहीं खो ना जाऊं 🌹

तुझ में उलझ कहीं तुझ तक ना पहुंच जाऊं🌹


      चाय,मैं

और तुम्हारी यादें.....🌹🌹


हाथ पकड़ ले तू मेरा कहीं और निकल ना जाऊँ
चाहती हूं खुद से मिलना बस तुझ तक पहुंच जाऊं



शनिवार, 23 जनवरी 2021

नीम

यह नीम बहुत कड़वा है 
जरा तुम तोड़ दो 
बहुत घना है बियाबान 
तुम्हारी यादों का 
जरा पार करवा दो 



छद्म

यह जो शांत सेहरा है ,

बहुत बंवडर लिए हुए है



धरती की प्यास बूझ ना सकी समंदर से 
तब एक टुकड़ा बादल पिया उसने

तेरे मिलने की आस एक छद्म आभास 

पूरा समंदर पास है 
फिर भी एक टुकड़ा 
बादल की प्यास है












रविवार, 17 जनवरी 2021

पद

 बहुत मुश्किल है अकेले उड़ना 


तेरे साथ हर उड़ान मुमकिन है 


तू था तो आसान था जीवन भी और प्रेम भी

कभी तैरने में इतने निपुण हुए ही नहीं
कि गहराई में गोता लगा सके
जब भी तेरे बस ऊपर ही उपर
तैरते रहे

साथ रही मेरे हमेशा परछाई की तरह 
मिल नही पाई कभी परछाई की तरह
बनी मुझसे ही थी तू परछाई की तरह
रही मुझसे दूर भी तू परछाई की तरह
रही मुझसे दोगुनी तू परछाई की तरह
तुझ में था मैं और तू परछाई की तरह






शनिवार, 16 जनवरी 2021

अनकही


तुम समझ पाते मेरी अनकही बातों को 

जो मैं नहीं कह पाई तुमसे मिलकर भी 

काश तुम समझ पाते उन जज्बातों को 

जो मैं नहीं दे पाई तुम्हें सब दे कर भी

नहीं बता पाई बहुत कुछ बताना था तुम्हें

नहीं बोल पाई बहुत कुछ कहना था तुम्हें 

फिर भी खुश हूँ मैं ये सोच कर के 

इश्क में रहती है चाहते जिनकी अधूरी 

होता है इश्क भी मुकम्मल उन्ही का



शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

ख्वाहिश

जिम्मेदारियों के आकाश में 

ख्वाहिशें उड़ गई सलीके से 

फरमाइशे आकर अपनो की 

सज गई हसरतों में करीने से




बुधवार, 13 जनवरी 2021

छलावा


तुम कैसा हो छलावा 

छलने आते हो रोज मुझे 

तुम कैसा हो साया 

कभी ना मिल पाते हो मुझे 

तपते सेहरा का पानी हो तुम 

कभी ना ठहर पाते हो तुम 

प्यासी मरू की बूंद हो तुम 

पल भर में खो जाते हो तुम 

हाँ तुम हो बस ख्याल मेरा 

फिर भी रहते सदा साथ मेरे 

हां तुम हो निशी स्वप्न मेरे 

जिसके बिना निशा अधूरी मेरी 

तुम हो अति प्रिय मुझे इतने 

सजते हो रोज तुम मुझसे 

उंढेल भावरस तुझ में सारा 

भरती हूँ मन उमंगों से सारा 

नहीं रहो यदि तुम जीवन में मेरे 

खुद को सुखी मरू मैं पाती 

चलती हूँ नित साथ मैं तेरे 

रहते हो हर पल तुम साथ मेरे 

नदिया में तुम सागर हो नीला 

उद्भव मुझे तुमसे ही अंत मिला

सोमवार, 11 जनवरी 2021

प्रेम


🌹प्रेम नहीं जाता कहीं 

🌹रहता है हमेशा 

🌹ह्रदय के उस कोने के 

🌹किवाङों के पीछे 

🌹जहां नहीं पहुंच पाता 

🌹कोई सिवाय आपके 

🌹और उसकी स्मृतियों के 

🌹यही स्मृतियां 

🌹आपके प्रेम को 

🌹जीवंत रखती है 

🌹उसकी स्मृतियों में भी

शनिवार, 9 जनवरी 2021

Lamhe

 वो दिन भी क्या दिन होते थे         🖤🤍🖤

जब फुर्सत को भी बड़ी फुरसत होती थी 

गुजारे जो नहीं गुजरती थी           🖤🤍🖤

दोपहर इतनी लंबी होती थी         🖤🤍🖤

तब जज्बातों को जीने का सहारा किताबें होती थी             🖤🤍🖤🤍🖤🤍🖤🤍🖤

और गुफ्तगू करने के लिए चाय की प्याली होती थी             🖤🤍🖤🤍🖤🤍🖤🤍🖤



शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

बुदबुदा

बुदगबुदा हूँ पानी का हूँ क्षणभंगुर 

हवा हूँ आते ही पानी हो जाऊँ गुम 

अस्तित्व नहीं मेरा स्थिर 

पल में बनूं खो जाऊं पल में 

किस पर करूं अभिमान 

ना तरलता ना बहाव मेरा 

जो भी है सब पानी 

मैं कहाँ हूँ मुझमें है पानी 

बनु पानी से मिटूं पानी पे 

जीवन मेरा है पानी से


सुदर्शन

जो थे मुजरिम कल तक 

आज न्यायाधीश बनने लगे  

जुल्म पालते रहे जो अब तक

मांग इंसाफ की करने लगे 

उड़ाई धज्जियाँ कर्तव्य की जिन्होने

बात वो अधिकार की करने 

रहा दामन खूनेलहू से सना 

बात वो ही पाक दामन की करने लगे 

बुझा दिए सैकड़ों दिए घरों के 

आज बात चिरागे रोशन की करने लगे 

नहीं जानते वो शिशुपाल 

और सुदर्शन से उलझने लगे





प्रेम

🌹प्रेम से जिसके हृदय को प्रेम है🌹🌹

🌹जो हृदय कष्ट के लिए आतुर है  🌹🌹

🌹बिना सोचे जो मरने को तैयार है   🌹🌹

🌹छोड़ पतवार डूबता जो मझधार है    🌹🌹 

🌹उसी हृदय को बस प्रेम का अधिकार है🌹🌹



गुरुवार, 7 जनवरी 2021

नारी पराकाष्ठा

मैं उपासना शबरी की 🦋

मैं दृढ़ता उर्मिला की 

मैं प्रतीक्षा अहिल्या की 

मैं सहनशीलता सीता की 

मैं शपत पांचाली केश की 

मैं पुत्र तपस्या कुंती की 

मैं सौ सूत क्षति गाँधारी की

मैं सत् हठिता सावित्री की🦋

मैं पति आज्ञा मांडवी की

मैं विदुषिता अनुसूया की

मैं अवहेलना यशोधरा की

मैं पुनीता सुलोचना की

मैं भक्ति लगन मीराँ की

मैं प्रेम पराकाष्ठा राधा की

मैं हूँ हर कथा नारी की🦋



मेघदूत

 🌹 हे घन मेघदूत 

🌹 कालीदास के 

🌹 सुनो पुकार 

🌹 द्रवित हृदय 

🌹 लगाए गुहार 

🌹 नहीं बरसों अभी 

🌹 धरा पर है सकुचाई

🌹 नहीं आगमन 

🌹 सदैव तुम्हारा 

🌹 होता फलदायी

🌹 शीत बढा है अभी 

🌹 धरा पर लौट जाओ

🌹 आना जब आए 

🌹 श्रावण मास 

🌹 मत सताओ

🌹 गाएगें तब मिल के 

🌹 राग मल्लार 

🌹 अभी तुम लौट जाओ


बुधवार, 6 जनवरी 2021

यादों की मूरत

मेरी तन्हाईयों की शक्ल हो तुम  

खयालों के औजारों से तराशी 

यादों की नक्काशी से सजी 

तमाम उम्र की फुर्सत से बनी 

इंतजार के मोतियों की सजी 

अरमानों के जेवर पहनाकर 

उतार पाया हूँ दिल का खालीपन 

तब कहीं निखार ला पाया हूँ 

तमाम मोहब्बत से बेपनाह हुस्न पर



कल्पना

कैसी माया हो 

कभी नहीं स्थिर रहती 

कैसी छाया हो 

कभी ना मुझसे मिलती 

कैसी काया हो 

कभी ना तुम मुरझाती 

नहीं हो मेरी फिर भी 

रोज मेरी बन जाती 

मुझसे ही सजती सँवरती 

फिर भी मुझे सताती 

तुम मेरी हो वो कल्पना 

नित यौवन चढती जाती


प्रतिक्षा

 रोज राह देखत शबरी 

आवत मोरे राम 

अब तो शबरी बनी अहिल्या 

थक गई मेरे राम 

अहिल्या बन भी जुग बीता 

कब आओगे राम 

बाकी रहा अब बन सीता 

समा जाऊं धरती पाश 

तुम ना आओ प्रभु मेरे तो 

मैं आऊँ साकेत धाम 



मैं हूँ प्रतीक्षा लम्बे युग की 

मैं मूरत पत्थर की 

भरो इसमें तुम संवेदना 

बना दो मुझको नारी 

सदियां बीती राह देखते 

लो डगर इधर की 

बनो वैद्य समझो वेदना 

हरो पीड़ा मन की




मंगलवार, 5 जनवरी 2021

परवाना

लाख कमियां है मुझ में 

एक खूबी तुझे चाहने की है 

बचना है लाख कमियों से तुझे 

या तमन्ना एक खूबी पे मरने की है 

जल जाऊं तेरे ही ईर्द-गिर्द 

यह हसरत इस परवाने की है 

बता शमा जलना है रोशनी के लिए 

या नियत मेरे साथ बुझने की है



दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में