आज हुई रक्त आंखें अपने ही रक्त से
उतरा रक्त आंखों में अपने ही खंजर से
बंद करो अराजकता जो फैली लालकिला प्राचीर से
होना सावधान तुम थे जो लाल प्रिय सबसे
नहीं बचोगे अब तुम सिंहनी के शावकों से
नहीं हुई है खाली गोद मेरी वीर सपूतों से
बना रहे जो मुझे विश्व गुरु बचना उन वीरों से
छिन्न भिन्न हुआ अभिमान गिरी है आन तुमसे
नहीं माफ होगी अराजकता जलोगे कोप अग्नी से
तुम जलोगे स्वयं अपनी पश्चाताप ज्वाला से
हुए लज्जाहीन किया शर्मसार मुझे
रहती थी गोद हरी तुमसे
किया तुमने बंजर मुझे
तुम हुए आतंकवादी
हुए विदेशी आक्रांत
रूह कांपती जिन्हे सोचकर
तुम हुए वो गद्दार
बंद करो अराजकता हुई मैं पानी पानी
नहीं अब सुरक्षित लाज लालो ने छीनी
नहीं निकले कभी अश्रु पीड़ा सहकर
देन सपूतों की बह निकला रक्ताभ सागर
बनने जा रही थी विश्व गुरु
तुमने गिराया धरा पे
तार-तार की गरिमा मेरी
छीना अभिमान मुझसे