तुम कैसा हो छलावा
छलने आते हो रोज मुझे
तुम कैसा हो साया
कभी ना मिल पाते हो मुझे
तपते सेहरा का पानी हो तुम
कभी ना ठहर पाते हो तुम
प्यासी मरू की बूंद हो तुम
पल भर में खो जाते हो तुम
हाँ तुम हो बस ख्याल मेरा
फिर भी रहते सदा साथ मेरे
हां तुम हो निशी स्वप्न मेरे
जिसके बिना निशा अधूरी मेरी
तुम हो अति प्रिय मुझे इतने
सजते हो रोज तुम मुझसे
उंढेल भावरस तुझ में सारा
भरती हूँ मन उमंगों से सारा
नहीं रहो यदि तुम जीवन में मेरे
खुद को सुखी मरू मैं पाती
चलती हूँ नित साथ मैं तेरे
रहते हो हर पल तुम साथ मेरे
नदिया में तुम सागर हो नीला
उद्भव मुझे तुमसे ही अंत मिला
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