बुधवार, 13 जनवरी 2021

छलावा


तुम कैसा हो छलावा 

छलने आते हो रोज मुझे 

तुम कैसा हो साया 

कभी ना मिल पाते हो मुझे 

तपते सेहरा का पानी हो तुम 

कभी ना ठहर पाते हो तुम 

प्यासी मरू की बूंद हो तुम 

पल भर में खो जाते हो तुम 

हाँ तुम हो बस ख्याल मेरा 

फिर भी रहते सदा साथ मेरे 

हां तुम हो निशी स्वप्न मेरे 

जिसके बिना निशा अधूरी मेरी 

तुम हो अति प्रिय मुझे इतने 

सजते हो रोज तुम मुझसे 

उंढेल भावरस तुझ में सारा 

भरती हूँ मन उमंगों से सारा 

नहीं रहो यदि तुम जीवन में मेरे 

खुद को सुखी मरू मैं पाती 

चलती हूँ नित साथ मैं तेरे 

रहते हो हर पल तुम साथ मेरे 

नदिया में तुम सागर हो नीला 

उद्भव मुझे तुमसे ही अंत मिला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में