गुरुवार, 24 मार्च 2022

दर्द

शख्सियत ऊँची तेरी अंबर सी विशाल 

मैं पतंग, डोर बंधी, बेबस लाचार 

होगी विफल कोशिश बढ़कर तुझे छूने की 

छूटेगी धरती और ना मिलेगा आ


रोज जनती है एक नई सीख

ये जिन्दगी सबसे बड़ी जननी है

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

होली

 बजी तान मन की 

खेले फाग होली की 

उठे हिलोर प्रेम की

बाजे थाप चंग की

उड़े अबीर प्रीत की

भिगे कोर हिय की 


ऐसा गुलाल 
डालूँ तेरे गाल 
उड़े तेरे 
मन में जाके
मेरे प्रेम के 
रंग हजार

खेलूँ होली 
तेरे संग ऐसी
रंग तू ऐसी 
मेरी चुनरिया
उतरे ना रंग 
सालों साल
रंग रसिया बन छलिया 
काहे सताए मन बसिया
होली खेले सब सखिया
रंग उड़े उड़े गुलाल
काहे भिगे मोरी अखियाँ
भाए तोहे बस दो टकिया
लाखों की तरसे है गुजरिया
दरद ना जाने पीर न जाने
माने ना तू मोरी बतिया
उड़े फाग की जब अबरिया
क्यूँ ना आए छोड़ नौकरिया
तरसे ना क्यूँ तेरा जियरया
हर पल तेरी राह निहारूँ
देखूँ हरदम तेरी ड़गरिया
क्यूँ ना आए मेरे परदेसिया

गुरुवार, 17 मार्च 2022

होली

कर जोरा जोरी अखियों की

खेली होली प्रीत की

उतर हृदय के आँगन में

फेकी गुलाल अपने रंग की


भर पिचकारी नेह की 

मेने डारि संग अबीर की

छुई तेरी हिय देहरी तो

हुई जीत मेरे प्रेम की




खेरी होरी 

ऐसी छोरी 

बरसाने की

संग कान्हा के 

गया कन्हाई 

फिर ना खेरी   

कभी होरी 

छोरी ऐसी

बरसाने की

तूने डारि 

भर पिचकारी

भिगी सारि

तेरे रंग में

रंग के सारी

मैं ना हारी

मेने जीती

तेरी प्रीति

जाऊँ तोपे 

मैं तो वारि


दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में