बुधवार, 6 जनवरी 2021

प्रतिक्षा

 रोज राह देखत शबरी 

आवत मोरे राम 

अब तो शबरी बनी अहिल्या 

थक गई मेरे राम 

अहिल्या बन भी जुग बीता 

कब आओगे राम 

बाकी रहा अब बन सीता 

समा जाऊं धरती पाश 

तुम ना आओ प्रभु मेरे तो 

मैं आऊँ साकेत धाम 



मैं हूँ प्रतीक्षा लम्बे युग की 

मैं मूरत पत्थर की 

भरो इसमें तुम संवेदना 

बना दो मुझको नारी 

सदियां बीती राह देखते 

लो डगर इधर की 

बनो वैद्य समझो वेदना 

हरो पीड़ा मन की




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Art work