रोज राह देखत शबरी
आवत मोरे राम
अब तो शबरी बनी अहिल्या
थक गई मेरे राम
अहिल्या बन भी जुग बीता
कब आओगे राम
बाकी रहा अब बन सीता
समा जाऊं धरती पाश
तुम ना आओ प्रभु मेरे तो
मैं आऊँ साकेत धाम
मैं हूँ प्रतीक्षा लम्बे युग की
मैं मूरत पत्थर की
भरो इसमें तुम संवेदना
बना दो मुझको नारी
सदियां बीती राह देखते
लो डगर इधर की
बनो वैद्य समझो वेदना
हरो पीड़ा मन की
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