मंगलवार, 28 जून 2022

तन्हाई

चढ़ती गई शिखर दर शिखर 

तन्हाइयों के कारवाँ,ओर

रखती गई हर पायदान पर 

तेरे संग का एक फूल 

फिर भी नहीं उठ पाए कदम

कई मर्तबा जब जकड़न हुई

तेरे संग की मजबूत तो तोड़ 

बेड़ियाँ ख्यालों की तेरे 

बढ़ती गई इस कठोर जीवन में

अकेले, अकेले, बस अकेले.....


नहीं आते मुझे सियासी दाँव पेंच तेरे ए शहर 
मेरे लिए तो भली मेरी गांव की पंचायत....
नहीं उठते तेरे अदब कायदे मेरे मजबूत कंधो पर
मुझे भली मेरे हल और मिट्टी की चाहत



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में