शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मनोविश्लेषण पद

 मनोविश्लेषण मन का दर्पण है 

करता स्वयं का निरीक्षण है 

विशुद्ध इसका विश्लेषण है 

निष्पक्ष इसका प्रेक्षण है

सफल इसका संश्लेषण है 

सतत इसका मूल्यांकन है 

सटीक इसका निष्कर्षण है 🤷‍♂️🤷‍♀️


Chatena

 🧍‍♂️मृत चेतना 

    उद्भव दमन का 

    बनी प्रवृत्ति पाशविकता की 

    जागृत अर्द्ध चेतना 

    उद्भव संवेदन का 

    बनी प्रवृत्ति मानवताकी 

    जागृत चेतना 

    उद्भव ब्रह्म ज्ञान का 

    बनी प्रवृत्ति देवता की🧍‍♀️



खामोश तबाही

  

माना दिल टूटने की आवाज नहीं होती 

तो क्या उसमें तबाही नहीं होती  💔

नहीं जरूरी शोर हो तबाही का हमेशा 

क्या यह ताकत खामोशी में नहीं होती

सुनाई होगी शोर की तबाही तो सब ने बहुत 

खामोश तबाही के  जुबान नहीं होती 

सुने होंगे शोर तबाही के मंजर के बहुत 

खामोश तबाही तो बया निगाहों से होती 👁




शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

लोह पुरूष पटेल

 नवभारत के नव प्रभाकर 

नहीं संभव है तेरा वर्णन 

तूने भारत का एकत्रण किया 

कैसे दिखाऊं तुझे मैं दिया 

राजा हो वो बांसवाड़ा का 

चाहे हो वोजोधपुर का 

प्रजा हो वो जूनागढ़ की 

या फिर बारी हो निजाम की 

कौन है जो तुझसे ना थर्राया

काटी तूने सबकी काट 

लोह पुरुष तब तू बन पाया 

सोमनाथ का उद्धार करवाया 

लहूलुहान भारत को बचाया 

ना होता तू अगर तो 

बनते जाने फिर कितने पाकिस्तान 

एक बना नेक बना फिर बना हिन्दुस्तान

जितनी ऊंची शख्सियत तुम्हारी 

बनी उतनी प्रतिमा तुम्हारी 🙏🧎‍♂️🧎‍♀️


गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

कविता शरद पूर्णिमा

 शरद पूर्णिमा का सुधाकर 

किस किस का है ये आकर्षण 

खिलेगी जल में जाने कितनी ही कुमुदनी 

कितने चकोर की होगी इसकी चांदनी 

मधुर होगी आज न जाने कितनी ही खीर 

किस-किस पर बरसेगा सरस ज्योत्सना का नीर 

कितने सागर में उठाएगा आज यह ज्वार 

स्वयं इसे बांधेगा मात्र पृथ्वी का दुलार 🌷



Gajal tassvur tera

 तेरा तसव्वुर जहन से मेरे जाता है नहीं 

बंद पलक से दीदार तेरा हटता है नहीं 💜

खोलती नहीं इस डर से निगाहों को 

खुली पलक में तु ठहर पाता है नहीं 💙

होने लगी हूं काफिर कैसे करूं इबादत 

तेरा मरमरी ख्याल आंखों से जाता नहीं 💚

माना एक  ख्वाब है तू इन आंखों का 

पर इनका होने से मुकर तु भी पाता है नहीं 💛

समझा दे मुझे तु ही चला जो ये है सिलसिला 

के समझ में मेरे तो कुछ आता है नहीं  🤦‍♀️🤷‍♀️


पद गतिशीलता के

 शून्यता भावों की जड़ता जीवन की    😌

स्पंदन भावों का सृजनता जीवन की   ☺

एकत्रण ज्ञान का विनाश ज्ञान का       😱

वितरण ज्ञान का विकास ज्ञान का      🙂

स्थिरता सूचनाओं की स्थिरता जागृति की😒

संपादन सूचनाओं का अलख जागृति की 😊

पतन मूल्यों का विक्रय स्वयं का      😏

विकास मूल्यों की श्रेष्ठता स्वयं की   🤗

स्थिरता ऊर्जा की स्थिरता पृथ्वी की 😱

गतिशीलता ऊर्जा की गतिशीलता पृथ्वी की   🥰🥰



बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कृष्ण कविता

 🙅‍♀️🙅‍♀️एक पल भूलू तुझे मैं कान्हा 

         ऐसा मैं सोच नहीं सकती 

         जो तू मुझ में ना हो साँवरा 

         क्या है फिर मेरी हस्ती 

         तेरे गुणों की माया गिरधर 

         सुमिरन करते मैं ना थकती  

         चलूं सदा उस राह पर नागर  👣

         जिस से हो कर तुझ तक पहुंचती 🦚🦋🦋🦚


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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

आतंकी साज़िश

 मुंबई  में  फिर  होगी  एक आतंकी  साज़िश  

फिर  निकाली जाएगी एक ताज पर रंजिश 

फिर  उङाया जाएगा मेट्रो को 

फिर मरना होगा बेकसूरों को 

कब तक चलेगा  ये सिलसिला 

खत्म कब होगा ये ज़लजला  

कब मिटेगी ये आतंकी  रंजिश

होगी कब इनके साथ प्रकृति  की साजिश  

के टूटेगा  कब गुमान  इनका  

करेगी कब प्रकृति  हिसाब  इनका😔😥😞😥😔😥



भ्रम पद

 🤷‍♀️मोन शांत होता है 

    विचारों का तूफान होता है 

    लक्ष्य प्राप्ती अंत है 

    दिशा हीन आरम्भ है

    ज्ञान प्राप्त होता है 

    हमेशा छूट जाता है                   

    प्रेम पाना पूर्णता है 

    प्रेम में खोना पूर्णता है 

    लोभ बुरा होता है 

    पाने में सहायक होता है

    सत्य साफ होता है

    सत्य भ्रामक होता है🤷‍♂️




सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

समर्पण पद

 🤲हथेली का दीपक करूँ

    अंगुली की बाट बनाऊँ 

    प्रेम का तेल डालूँ 

    फिर दीपक जलाऊँ 

    तब आरती तेरी करूँ

    कान्हा तुझे रिझाऊँ 

    नेह का अँजन डालूं 

    तब पलक  बिठाऊँ 

    भक्ति की मेहंदी रचाऊँ 

    तब श्याम शरण जाऊं 

    बंधे फिर साँवरा जो मेरे 

    कभी ना छूट पाऊँ 🙌



रविवार, 25 अक्तूबर 2020

भ्रम पद

 🤷‍♀️मोन शांत होता है 

    विचारों का तूफान होता है 

    ज्ञान प्राप्त होता है 

    हमेशा छूट जाता है 

    लक्ष्य प्राप्ति सुख देता है 

    लक्ष्य पर चलना संतुष्टि देता है 

    प्रेम पाना पूर्णता है 

    प्रेम में त्याग पूर्णता है 

    लोभ बुरा होता है 

    पाने में सहायक होता है

    सत्य साफ होता है

    सत्य भ्रामक होता है🤷‍♂️


पद निशब्द

 निशब्द संकल्प 

करें कायाकल्प विचारों की दृढता का 

निशब्द बंधन 

करे तटबंधन 

स्वयं से स्वयं का 

निशब्द वाणी 

चले जिस पर प्राणी  

ब्रह्म ज्ञान अंतर्मन का 

निशब्द माधुर्य  

है वो सौन्दर्य 

सामीप्य करे जो ईश्वर का 🦋🌷



शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

कविता दशानन

 दशानन तुम कितने थे बलशाली 

सोने की लंका भी थी तुम्हारी 

नहीं थी सरल मौत तुम्हारी 

फिर क्यों आया अंत तुम्हारा 

क्यूं पापों से भरा घड़ा तुम्हारा 

ना होता अगर लालच जो तुमने 

फैलता यश फिर चारों दिशाओं में 

ना होती जो दानव प्रवृत्ति तुम्हारी 

सफलता होती हर पग पर तुम्हारी 

बुद्धि थी उच्च कोटि की तुम्हारी 

क्यूं ना फैली यश कीर्ति तुम्हारी 

दस मुख से शोभित सूरत थी तुम्हारी 

फिर क्यूं ना हो पाई जग को वो प्यारी 

हर मुख में थी एक खूबी तुम्हारी 

तो हर मुख में थी एक बुराई तुम्हारी 

ना होता जो दंभ तुममे इतना 

पा जाते सम्मान तुम फिर कितना 

नहीं देखते जो तुम पर नारी 

तो ना होती ये गति तुम्हारी 

होती अगर संतोषी प्रवृत्ति तुम्हारी 

मात ना होती राम से तुम्हारी 

सत् के पथ पर रहते अङिग तो 

हस्ती कुछ और होती तुम्हारी





गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

कविता वक्त

 💔 वक्त से हम इतने क्यूँ मजबूर होते गए 

     इतने थे पास फिर भी क्यूँ दूर होते गए 

     सुना था इलाज है वक्त हर मर्ज का 

     कैसे छूटा दामन फिर इससे हमारे नसीब का 

     ऐसा नहीं था के नहीं किया था ऐतबार हमने इस पर 

     दिया था वक्त को पूरा वक्त हमने भी वक्त पर 

     किया तो था सब कुछ हमने भी इसी के हवाले 

     फिर भी रास ना आई इसे तो हमारी वफाएं 

     क्यूँ इसके सितम हम पर इतने हो गए 

     ख्वाब तो छोड़ो खुद हम भी टूट कर रह गए 💔



कृष्ण के पद

 🪕कान्हा मैं तो जोगन हो जाऊंगी 

     राधा बन ना मिल सकी जो तुझसे 

🪕मीराँ बन लीन हो जाऊंगी 

🙏चाकरी नहीं स्वीकार की मेरी तो🙏

     बन करमा खीचड़ खिलाऊंगी 

     जो नहीं रीझे नटवर तुम तो 

   बन नरसीं ढीठ हो जाऊंगी 

     जब तुम आओगे सालग मेरे 

🌿तुलसी बन मैं खिल जाऊंगी🌿




Shayari page

 🍁उसके के शहर में आया है तू तो  

इस कदर कर अदा फर्ज इश्क का 

याद में उसकी भर तो जाए निगाहें तेरी 

पर आंखों से छलके ना अश्क तेरा🍁

   

🍁पर्दानशी होगा  वो आज भी पर्दे में 

डर रहा होगा वो आज भी सोने के पिंजरे में 

गिरा देता जब वो पर्दे को अपने 

आया था तूफान जब उसे लेने

क्या हुआ जो फिर रहता दरख़्तों पे

पंख तो छू लेता मगर आसमानों पे🍁


🍁कल ना रहूं जो गर सामने मैं तेरे

देख लेना बस दिल में झांक कर तेरे

नहीं मिलूंगा सामने निगाहों के तेरी 

रहूंगा मगर सँवर कर यादों में तेरी🍁






कविता सैलाब

 🍁 उठने दो एक ज्वार दर्द का 

     मत रोको इसे जहन के भीतर 

     बह जाने दो सैलाब दुखो का 

     अश्कों से चाहे लफ्जों में बनकर 

     निकलेंगे जो अश्को के समंदर 

     हल्का कर देंगे तुम को ये अंदर 

     जो निकलेंगे लफ्ज़ ये बनकर 

     तो होगी इनसे रचना बेहतर 🦚



सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

कविता एक भारत

 मतभेद रखो पर मनभेद मत रखो 

सब अपने हैं किसी को पराया मत रखो 

मिलकर चलो आगे बढ़ो नए भारत की नींव रखो 

एक रहो नेक रहो भारत को दिल में रखो 

बढ़ रही आगे दुनिया खुद को ना जाति भेद में पीछे रखो 

भारतीय थे भारतीय हैं खुद को भारतीय ही रखो 

एक थे एक हैं खुद को एक ही रखो 

भारत की पहचान को सदा जीवंत ही रखो



रविवार, 18 अक्तूबर 2020

Sona banam sona


सोना काम आएगा ना सोना 

एक से उड़ जाएगी नींदे 

दूजे से सब पड़ जायेगा खोना 

सुना बुजुर्गों से यही है हमने 

जो जागेगा वह पाएगा 

एक रूप है रानी लक्ष्मी का 

दूजा रूप है सपनों की रानी का 

एक स्वभाव की है चंचला 

क्यों ना हो नरोत्तम वर उसका 

दूजी का स्वभाव है 

आलस फैलाने का 

एक मिले जिसे खिल जाता वो है 

दूजी मिले तो खो जाता वो है 

दोनों से दूर रहना तो है बेहतर 

पर ना मिले दोनों तो जीवन है बद्तर


मोदक जी

चली सवारी मूषक जी की 
बैठे इन पर एकदंत जी 
ढूंढने लगी नजरें फिर दोनों की 
इधर उधर कहीं हो मोदक जी 
ढूंढ ढूंढ कर नजर थकी दोनों की 
पर मिला नहीं उनको मोदक जी 
चारों ओर ढेर पिज्जा बर्गर का  
बची जगह तो डिब्बा था टिन का 
कहीं पड़े थे पास्ता मंचूरियन 
ढेर पड़े थे फूड अमेरिकन 
नहीं मिला जब उनको मोदक जी 
लगा फिर यही उन दोनों को जी 
आ गए लगता गलत है बस्ती 
नहीं है यह तो हिंदुस्तानी संस्कृति


   

शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

रात गुलजार कविता

 दूर क्षितिज पर शाम को 

सूरज भी जाता धाम को 

उड़ते पंछी ढूंढे नीड को 

हलदर भी लौटे शाम को 

क्यूँ कि जानते ये तो सभी है 

सामने मुंह को अंधेरा है 

रात में बाहर नहीं कोई बसेरा है 

मगर यह कौन सा दौर है 

रातों में अब घूमता कौन है 

क्यूँ इंसान अब तक थकता नहीं 

रातों को भी अब सोता नहीं 

सजते मयखाने क्यूँ रात को 

निकलते क्यूँ मयकस रात को 

हाँ यह कैसा दौर है 

दिन जहां सुनसान है 

रात यहां गुलजार है

                                                      पांचाली 




बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

हिंदी बहन उर्दू

 लिखती हूं हिंदी पर क्यूं उर्दू जहन से जाती नहीं

क्यूं उर्दू बिना शायरी मुकम्मल हो पाती नहीं

बयां दर्द करूं तो क्यूं शब्द मिल पाते नहीं 

उर्दू अल्फाजों बिना बात क्यूँ बन पाती नहीं 

अपने कहते है पराई  है नहीं ये अपनी नहीं  

अपनों की भीड़ मे क्यूँ गैर इसे मैं पाती नहीं 

नहीं ऐसा नहीं की कवियों की वाणी में रस आता नहीं 

तो फिर क्यूं मुशायरे को कभी भूल पाती नहीं 😌




शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

कविता निर्भया पांचाली के द्वारा लिखी गई

उठो जागो भारत के लोगों 
जगा लो तुम अपने स्वाभिमान को 
क्यों केवल  जननी ही जागे 
रहे क्यों पिता और भाई सोते 
कहां गए वह समाज सुधारक 
गए कहां राममोहन और विद्यासागर 
जुल्मो के खिलाफ भुजा थी जिनकी फड़की 
करी खिलाफत फिर पूरे समाज की 
हुई सुरक्षित जिससे फिर हर अबला 
तुमसे तो अच्छा बैटिंक ही निकला 
था फिरंगी पर अपना निकला 
सती प्रथा को खत्म जो कर गया 
था हुमायूं भी एक विदेशी 
लगी देर पर पहुंचा वह भी 
रखी लाज उसने भी राखी की 
राह तक रहे तुम किस पल की 
क्यों नहीं कर्मवती आग से बचती 
नहीं पुरुषार्थ है किसी को मिटाना 
है पुरुषार्थ तो है जीवन दे जाना
ना उभार पा रहे अपनी बेटी बहनो को
नहीं दे पा रहे सुरक्षा तुम उनको 
जागो तुम अपने ही लोगों 
जैसे दहेज की आग बुझाई 
हर जलती नारी थी बचाई  
जैसे थी सती प्रथा मिटाई 
हर नारी थी लपटों से बचाई 
विधवा विवाह से अबला को उभारा 
वैसे ही अब कर्तव्य तुम्हारा 
लगी आग एक और बुझानी 
हर निर्भया तुमको है बचानी






शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

poem aadhuri mohabbat written by panchali



 this poem is about feeling about a lady that is fulfill of everything in life but she is not completed yet.

" ek asi mahila jo apne jivan me sampurna hote hue bhi adhuri hain

this poem is written by panchali

poem chera written by panchali

this poem is about a loving unknown face 

this poem is written by panchali


this is the video of this poem 
we have recited this poem in this video
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poem covid written by pachali


 this poem is about covid 


poem man ki baat written by panchali

this poem is dedicated to our hon. prime minister Mr narendra modi and his work.

this poem is written by panchali .






Meri Vasundhra poem including Narendra Modi written by panchali

 Today we are giving you a patriotic poem MERI VASUNDHRA including NARENDRA MODI

presented and written by panchali


this is the video of thi poem meri vasundhra 

please listen and enjoy.

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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में