मनोविश्लेषण मन का दर्पण है
करता स्वयं का निरीक्षण है
विशुद्ध इसका विश्लेषण है
निष्पक्ष इसका प्रेक्षण है
सफल इसका संश्लेषण है
सतत इसका मूल्यांकन है
सटीक इसका निष्कर्षण है 🤷♂️🤷♀️
in this blog we will give you five types of things (panchali) which are 1 poems on current affairs and other topics 2 poems on narendra modi 3 sher N shayari,ghazals 4 selfmade bhajans of lord krishna 5 lyrics of rajasthani songs with video so please enjoy and come again and again on our blog. thankyou Veena mawar
मनोविश्लेषण मन का दर्पण है
करता स्वयं का निरीक्षण है
विशुद्ध इसका विश्लेषण है
निष्पक्ष इसका प्रेक्षण है
सफल इसका संश्लेषण है
सतत इसका मूल्यांकन है
सटीक इसका निष्कर्षण है 🤷♂️🤷♀️
🧍♂️मृत चेतना
उद्भव दमन का
बनी प्रवृत्ति पाशविकता की
जागृत अर्द्ध चेतना
उद्भव संवेदन का
बनी प्रवृत्ति मानवताकी
जागृत चेतना
उद्भव ब्रह्म ज्ञान का
बनी प्रवृत्ति देवता की🧍♀️
माना दिल टूटने की आवाज नहीं होती
तो क्या उसमें तबाही नहीं होती 💔
नहीं जरूरी शोर हो तबाही का हमेशा
क्या यह ताकत खामोशी में नहीं होती
सुनाई होगी शोर की तबाही तो सब ने बहुत
खामोश तबाही के जुबान नहीं होती
सुने होंगे शोर तबाही के मंजर के बहुत
खामोश तबाही तो बया निगाहों से होती 👁
नवभारत के नव प्रभाकर
नहीं संभव है तेरा वर्णन
तूने भारत का एकत्रण किया
कैसे दिखाऊं तुझे मैं दिया
राजा हो वो बांसवाड़ा का
चाहे हो वोजोधपुर का
प्रजा हो वो जूनागढ़ की
या फिर बारी हो निजाम की
कौन है जो तुझसे ना थर्राया
काटी तूने सबकी काट
लोह पुरुष तब तू बन पाया
सोमनाथ का उद्धार करवाया
लहूलुहान भारत को बचाया
ना होता तू अगर तो
बनते जाने फिर कितने पाकिस्तान
एक बना नेक बना फिर बना हिन्दुस्तान
जितनी ऊंची शख्सियत तुम्हारी
बनी उतनी प्रतिमा तुम्हारी 🙏🧎♂️🧎♀️
शरद पूर्णिमा का सुधाकर
किस किस का है ये आकर्षण
खिलेगी जल में जाने कितनी ही कुमुदनी
कितने चकोर की होगी इसकी चांदनी
मधुर होगी आज न जाने कितनी ही खीर
किस-किस पर बरसेगा सरस ज्योत्सना का नीर
कितने सागर में उठाएगा आज यह ज्वार
स्वयं इसे बांधेगा मात्र पृथ्वी का दुलार 🌷
तेरा तसव्वुर जहन से मेरे जाता है नहीं
बंद पलक से दीदार तेरा हटता है नहीं 💜
खोलती नहीं इस डर से निगाहों को
खुली पलक में तु ठहर पाता है नहीं 💙
होने लगी हूं काफिर कैसे करूं इबादत
तेरा मरमरी ख्याल आंखों से जाता नहीं 💚
माना एक ख्वाब है तू इन आंखों का
पर इनका होने से मुकर तु भी पाता है नहीं 💛
समझा दे मुझे तु ही चला जो ये है सिलसिला
के समझ में मेरे तो कुछ आता है नहीं 🤦♀️🤷♀️
शून्यता भावों की जड़ता जीवन की 😌
स्पंदन भावों का सृजनता जीवन की ☺
एकत्रण ज्ञान का विनाश ज्ञान का 😱
वितरण ज्ञान का विकास ज्ञान का 🙂
स्थिरता सूचनाओं की स्थिरता जागृति की😒
संपादन सूचनाओं का अलख जागृति की 😊
पतन मूल्यों का विक्रय स्वयं का 😏
विकास मूल्यों की श्रेष्ठता स्वयं की 🤗
स्थिरता ऊर्जा की स्थिरता पृथ्वी की 😱
गतिशीलता ऊर्जा की गतिशीलता पृथ्वी की 🥰🥰
🙅♀️🙅♀️एक पल भूलू तुझे मैं कान्हा
ऐसा मैं सोच नहीं सकती
जो तू मुझ में ना हो साँवरा
क्या है फिर मेरी हस्ती
तेरे गुणों की माया गिरधर
सुमिरन करते मैं ना थकती
चलूं सदा उस राह पर नागर 👣
जिस से हो कर तुझ तक पहुंचती 🦚🦋🦋🦚
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मुंबई में फिर होगी एक आतंकी साज़िश
फिर निकाली जाएगी एक ताज पर रंजिश
फिर उङाया जाएगा मेट्रो को
फिर मरना होगा बेकसूरों को
कब तक चलेगा ये सिलसिला
खत्म कब होगा ये ज़लजला
कब मिटेगी ये आतंकी रंजिश
होगी कब इनके साथ प्रकृति की साजिश
के टूटेगा कब गुमान इनका
करेगी कब प्रकृति हिसाब इनका😔😥😞😥😔😥
🤷♀️मोन शांत होता है
विचारों का तूफान होता है
लक्ष्य प्राप्ती अंत है
दिशा हीन आरम्भ है
ज्ञान प्राप्त होता है
हमेशा छूट जाता है
प्रेम पाना पूर्णता है
प्रेम में खोना पूर्णता है
लोभ बुरा होता है
पाने में सहायक होता है
सत्य साफ होता है
सत्य भ्रामक होता है🤷♂️
🤲हथेली का दीपक करूँ
अंगुली की बाट बनाऊँ
प्रेम का तेल डालूँ
फिर दीपक जलाऊँ
तब आरती तेरी करूँ
कान्हा तुझे रिझाऊँ
नेह का अँजन डालूं
तब पलक बिठाऊँ
भक्ति की मेहंदी रचाऊँ
तब श्याम शरण जाऊं
बंधे फिर साँवरा जो मेरे
कभी ना छूट पाऊँ 🙌
🤷♀️मोन शांत होता है
विचारों का तूफान होता है
ज्ञान प्राप्त होता है
हमेशा छूट जाता है
लक्ष्य प्राप्ति सुख देता है
लक्ष्य पर चलना संतुष्टि देता है
प्रेम पाना पूर्णता है
प्रेम में त्याग पूर्णता है
लोभ बुरा होता है
पाने में सहायक होता है
सत्य साफ होता है
सत्य भ्रामक होता है🤷♂️
निशब्द संकल्प
करें कायाकल्प विचारों की दृढता का
निशब्द बंधन
करे तटबंधन
स्वयं से स्वयं का
निशब्द वाणी
चले जिस पर प्राणी
ब्रह्म ज्ञान अंतर्मन का
निशब्द माधुर्य
है वो सौन्दर्य
सामीप्य करे जो ईश्वर का 🦋🌷
दशानन तुम कितने थे बलशाली
सोने की लंका भी थी तुम्हारी
नहीं थी सरल मौत तुम्हारी
फिर क्यों आया अंत तुम्हारा
क्यूं पापों से भरा घड़ा तुम्हारा
ना होता अगर लालच जो तुमने
फैलता यश फिर चारों दिशाओं में
ना होती जो दानव प्रवृत्ति तुम्हारी
सफलता होती हर पग पर तुम्हारी
बुद्धि थी उच्च कोटि की तुम्हारी
क्यूं ना फैली यश कीर्ति तुम्हारी
दस मुख से शोभित सूरत थी तुम्हारी
फिर क्यूं ना हो पाई जग को वो प्यारी
हर मुख में थी एक खूबी तुम्हारी
तो हर मुख में थी एक बुराई तुम्हारी
ना होता जो दंभ तुममे इतना
पा जाते सम्मान तुम फिर कितना
नहीं देखते जो तुम पर नारी
तो ना होती ये गति तुम्हारी
होती अगर संतोषी प्रवृत्ति तुम्हारी
मात ना होती राम से तुम्हारी
सत् के पथ पर रहते अङिग तो
हस्ती कुछ और होती तुम्हारी
💔 वक्त से हम इतने क्यूँ मजबूर होते गए
इतने थे पास फिर भी क्यूँ दूर होते गए
सुना था इलाज है वक्त हर मर्ज का
कैसे छूटा दामन फिर इससे हमारे नसीब का
ऐसा नहीं था के नहीं किया था ऐतबार हमने इस पर
दिया था वक्त को पूरा वक्त हमने भी वक्त पर
किया तो था सब कुछ हमने भी इसी के हवाले
फिर भी रास ना आई इसे तो हमारी वफाएं
क्यूँ इसके सितम हम पर इतने हो गए
ख्वाब तो छोड़ो खुद हम भी टूट कर रह गए 💔
🪕कान्हा मैं तो जोगन हो जाऊंगी
राधा बन ना मिल सकी जो तुझसे
🪕मीराँ बन लीन हो जाऊंगी
🙏चाकरी नहीं स्वीकार की मेरी तो🙏
बन करमा खीचड़ खिलाऊंगी
जो नहीं रीझे नटवर तुम तो
बन नरसीं ढीठ हो जाऊंगी
जब तुम आओगे सालग मेरे
🌿तुलसी बन मैं खिल जाऊंगी🌿
🍁उसके के शहर में आया है तू तो
इस कदर कर अदा फर्ज इश्क का
याद में उसकी भर तो जाए निगाहें तेरी
पर आंखों से छलके ना अश्क तेरा🍁
🍁पर्दानशी होगा वो आज भी पर्दे में
डर रहा होगा वो आज भी सोने के पिंजरे में
गिरा देता जब वो पर्दे को अपने
आया था तूफान जब उसे लेने
क्या हुआ जो फिर रहता दरख़्तों पे
पंख तो छू लेता मगर आसमानों पे🍁
🍁कल ना रहूं जो गर सामने मैं तेरे
देख लेना बस दिल में झांक कर तेरे
नहीं मिलूंगा सामने निगाहों के तेरी
रहूंगा मगर सँवर कर यादों में तेरी🍁
🍁 उठने दो एक ज्वार दर्द का
मत रोको इसे जहन के भीतर
बह जाने दो सैलाब दुखो का
अश्कों से चाहे लफ्जों में बनकर
निकलेंगे जो अश्को के समंदर
हल्का कर देंगे तुम को ये अंदर
जो निकलेंगे लफ्ज़ ये बनकर
तो होगी इनसे रचना बेहतर 🦚
मतभेद रखो पर मनभेद मत रखो
सब अपने हैं किसी को पराया मत रखो
मिलकर चलो आगे बढ़ो नए भारत की नींव रखो
एक रहो नेक रहो भारत को दिल में रखो
बढ़ रही आगे दुनिया खुद को ना जाति भेद में पीछे रखो
भारतीय थे भारतीय हैं खुद को भारतीय ही रखो
एक थे एक हैं खुद को एक ही रखो
भारत की पहचान को सदा जीवंत ही रखो
एक से उड़ जाएगी नींदे
दूजे से सब पड़ जायेगा खोना
सुना बुजुर्गों से यही है हमने
जो जागेगा वह पाएगा
एक रूप है रानी लक्ष्मी का
दूजा रूप है सपनों की रानी का
एक स्वभाव की है चंचला
क्यों ना हो नरोत्तम वर उसका
दूजी का स्वभाव है
आलस फैलाने का
एक मिले जिसे खिल जाता वो है
दूजी मिले तो खो जाता वो है
दोनों से दूर रहना तो है बेहतर
पर ना मिले दोनों तो जीवन है बद्तर
दूर क्षितिज पर शाम को
सूरज भी जाता धाम को
उड़ते पंछी ढूंढे नीड को
हलदर भी लौटे शाम को
क्यूँ कि जानते ये तो सभी है
सामने मुंह को अंधेरा है
रात में बाहर नहीं कोई बसेरा है
मगर यह कौन सा दौर है
रातों में अब घूमता कौन है
क्यूँ इंसान अब तक थकता नहीं
रातों को भी अब सोता नहीं
सजते मयखाने क्यूँ रात को
निकलते क्यूँ मयकस रात को
हाँ यह कैसा दौर है
दिन जहां सुनसान है
रात यहां गुलजार है
पांचाली
लिखती हूं हिंदी पर क्यूं उर्दू जहन से जाती नहीं
क्यूं उर्दू बिना शायरी मुकम्मल हो पाती नहीं
बयां दर्द करूं तो क्यूं शब्द मिल पाते नहीं
उर्दू अल्फाजों बिना बात क्यूँ बन पाती नहीं
अपने कहते है पराई है नहीं ये अपनी नहीं
अपनों की भीड़ मे क्यूँ गैर इसे मैं पाती नहीं
नहीं ऐसा नहीं की कवियों की वाणी में रस आता नहीं
तो फिर क्यूं मुशायरे को कभी भूल पाती नहीं 😌
" ek asi mahila jo apne jivan me sampurna hote hue bhi adhuri hain
this poem is written by panchali
this poem is about a loving unknown face
this poem is written by panchali
this poem is written by panchali .
Today we are giving you a patriotic poem MERI VASUNDHRA including NARENDRA MODI
presented and written by panchalithis is the video of thi poem meri vasundhra
please listen and enjoy.
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यादों का भी होता है पुनर्जन्म, तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन: हृदय के गर्भ में