सोमवार, 29 नवंबर 2021

चाहत

आ के एक बार फिर मोहब्बत जवाँ कर ले 

गिरके एक दूजे की चाहत में मोहब्बत में संभल ले  


गुलाल तेरी प्रीत का 

शगुन मेरी जीत का 



मरवण

 ढ़ोला जी चुंदड़ी मंगा दो जयपुरियै सूँ 

ओढ़नी झीणी सरक सरक जाय

ओढ़े मरवण थारी पर

लाज हूँ मर मर जाय


थे नहीं आया ढ़ोला 
जो लगाई पीपल हुई घेर घुमेर 
लाखाँ री घरवाली छोटी थारी 
दो टका री मजदूरी बढ़ेर 


पीड़ा मौन की



 मौन हूँ मैं,ये ना समझना पीड़ा नहीं

ये भी ना कहना उत्तरदायी तू नहीं

दिए जो घाव रिस रहें है अब तक

ये ना कहना इनमें हाथ तेरा नहीं 

स्वाभिमान हुआ तुझसे ही घायल

तुझसे पसरा ये मौन सन्नाटा नहीं

ये ना कहना उठी जो आँधी मौन की

कण कण इसकी की तैयारी तूने नहीं

बने आज जो ये बवंडर विकराल 

किया मौन को भी आह्लादित तूने नहीं

रौंद कर तेरे, कई खार समन्दरी

तब बना ये मरू विशाल नहीं

हुआ शांत गहन नितांत एकाकी

दबा भीतर इसके लाव उबाल नहीं 

पर मिला जो तुझसे मौन उपहार मुझे 

ये नहीं कि निखरा मेरा आत्मबल नहीं 

टूटा था कण-कण हिय का जो सेतू

कैसे कह दूँ बंधा इस मौन मरू से नहीं

हुई थी बंजर देख शब्दों से यहाँ कैसे मानूँ

किया नव अंकुरण मौन ने नहीं 

आज निखरा जो तेज मेरे भीतर का

कारण तुझ से मिला मौन है, तू नहीं   

 

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में