मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

जुस्तजू

जुस्तजू-ए-क़फ़स में उलझी मेरी रूह

रूह_ए_हसरत में उलझी तेरी जुस्तजू 


सजना

तुम बसे हो आँखो में सजना

काजल मना कर रहा है 

तेरी आँखो मे नहीं सजना


 

आया बसंत है अंत

सूखी निराशाओं का

खिली बयार महकी इंद्रियां 

जागी मन पुरवाई समस्त






कसक

कसक मेरे मन की 

समझी तो होती कभी 

क्या हमेशा अपनी ही 

चाहते गिनाते रहे

ना भीग पाए कभी 

मेरी आँखो की नमी से

हमेशा अपनी ही 

मुस्कुराहटें दिखाते रहे

रिक्त हो हो कर ख्वाब मेरे 

सदा तेरे ख्वाब सजाते रहे


दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में