शुक्रवार, 24 जून 2022

फुर्सत

आ मेरी शुभ दोपहरी 

कर लूँ याद उन्हे 

छू कर तेरी देहरी

बैठ तेरे शांत प्रांगण में

कर लूँ दो मुलाकातें मन में

भीग जाऊँ तेरे 

हर एहसास के साथ 

सुमिर लूँ उनका नाम 

हर श्वांस के साथ 


देख असर तेरी एक मुलाकात का 

बेअसर हो गया दिल का धड़कना 

खड़े हैं अरमानों को समेटे बेसुध  

के संग चल रहा है जमाना


ना पूछ आलम मेरी मशरूफियत का 

दिल तन्हा है भीड़ भरे विराने में



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में