शनिवार, 16 जनवरी 2021

अनकही


तुम समझ पाते मेरी अनकही बातों को 

जो मैं नहीं कह पाई तुमसे मिलकर भी 

काश तुम समझ पाते उन जज्बातों को 

जो मैं नहीं दे पाई तुम्हें सब दे कर भी

नहीं बता पाई बहुत कुछ बताना था तुम्हें

नहीं बोल पाई बहुत कुछ कहना था तुम्हें 

फिर भी खुश हूँ मैं ये सोच कर के 

इश्क में रहती है चाहते जिनकी अधूरी 

होता है इश्क भी मुकम्मल उन्ही का



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में