Veena Mawar Author
कभी नहीं स्थिर रहती
कैसी छाया हो
कभी ना मुझसे मिलती
कैसी काया हो
कभी ना तुम मुरझाती
नहीं हो मेरी फिर भी
रोज मेरी बन जाती
मुझसे ही सजती सँवरती
फिर भी मुझे सताती
तुम मेरी हो वो कल्पना
नित यौवन चढती जाती
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