ना भर सकेगा घाव सदियों
तक जो मिला है तुमसे
नहीं करूंगी माफ अराजकता
तेरी ना करना आस मुझसे
तुम थे लाल जिनसे थी
गोद हरी उजड़ी है तुमसे
लङूंगी कैसे आतंक गद्दार
और विदेशी आक्रांत से
के मेरे लाल ने ही कर दिया
छलनी मिली वेदना ऐसी तुमसे
यही थे क्या जय जवान तेरे
पूछ रही सारी दुनिया मुझसे
लिए अश्रु शर्मिन्दा हुँ मैं खुद से
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