रविवार, 31 जनवरी 2021

अराजकता _बंद _करो

ना भर सकेगा घाव सदियों  

तक जो  मिला है तुमसे 

नहीं करूंगी माफ अराजकता 

तेरी ना करना आस मुझसे 

तुम थे लाल जिनसे थी 

गोद हरी उजड़ी है तुमसे 

लङूंगी कैसे आतंक गद्दार 

और विदेशी आक्रांत से 

के मेरे लाल ने ही कर दिया 

छलनी मिली वेदना ऐसी तुमसे

यही थे क्या जय जवान तेरे 

पूछ रही सारी दुनिया मुझसे

लिए अश्रु शर्मिन्दा हुँ मैं खुद से 



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में