आज हुई रक्त आंखें अपने ही रक्त से
उतरा रक्त आंखों में अपने ही खंजर से
बंद करो अराजकता जो फैली लालकिला प्राचीर से
होना सावधान तुम थे जो लाल प्रिय सबसे
नहीं बचोगे अब तुम सिंहनी के शावकों से
नहीं हुई है खाली गोद मेरी वीर सपूतों से
बना रहे जो मुझे विश्व गुरु बचना उन वीरों से
छिन्न भिन्न हुआ अभिमान गिरी है आन तुमसे
नहीं माफ होगी अराजकता जलोगे कोप अग्नी से
तुम जलोगे स्वयं अपनी पश्चाताप ज्वाला से
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