बुधवार, 6 जनवरी 2021

यादों की मूरत

मेरी तन्हाईयों की शक्ल हो तुम  

खयालों के औजारों से तराशी 

यादों की नक्काशी से सजी 

तमाम उम्र की फुर्सत से बनी 

इंतजार के मोतियों की सजी 

अरमानों के जेवर पहनाकर 

उतार पाया हूँ दिल का खालीपन 

तब कहीं निखार ला पाया हूँ 

तमाम मोहब्बत से बेपनाह हुस्न पर



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में