गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

कविता वक्त

 💔 वक्त से हम इतने क्यूँ मजबूर होते गए 

     इतने थे पास फिर भी क्यूँ दूर होते गए 

     सुना था इलाज है वक्त हर मर्ज का 

     कैसे छूटा दामन फिर इससे हमारे नसीब का 

     ऐसा नहीं था के नहीं किया था ऐतबार हमने इस पर 

     दिया था वक्त को पूरा वक्त हमने भी वक्त पर 

     किया तो था सब कुछ हमने भी इसी के हवाले 

     फिर भी रास ना आई इसे तो हमारी वफाएं 

     क्यूँ इसके सितम हम पर इतने हो गए 

     ख्वाब तो छोड़ो खुद हम भी टूट कर रह गए 💔



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में