लिखती हूं हिंदी पर क्यूं उर्दू जहन से जाती नहीं
क्यूं उर्दू बिना शायरी मुकम्मल हो पाती नहीं
बयां दर्द करूं तो क्यूं शब्द मिल पाते नहीं
उर्दू अल्फाजों बिना बात क्यूँ बन पाती नहीं
अपने कहते है पराई है नहीं ये अपनी नहीं
अपनों की भीड़ मे क्यूँ गैर इसे मैं पाती नहीं
नहीं ऐसा नहीं की कवियों की वाणी में रस आता नहीं
तो फिर क्यूं मुशायरे को कभी भूल पाती नहीं 😌
बहुत ही सुंदर.... ✍️✍️✍️
जवाब देंहटाएंबहुत आभार जी
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