बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

हिंदी बहन उर्दू

 लिखती हूं हिंदी पर क्यूं उर्दू जहन से जाती नहीं

क्यूं उर्दू बिना शायरी मुकम्मल हो पाती नहीं

बयां दर्द करूं तो क्यूं शब्द मिल पाते नहीं 

उर्दू अल्फाजों बिना बात क्यूँ बन पाती नहीं 

अपने कहते है पराई  है नहीं ये अपनी नहीं  

अपनों की भीड़ मे क्यूँ गैर इसे मैं पाती नहीं 

नहीं ऐसा नहीं की कवियों की वाणी में रस आता नहीं 

तो फिर क्यूं मुशायरे को कभी भूल पाती नहीं 😌




3 टिप्‍पणियां:

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में