बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कृष्ण कविता

 🙅‍♀️🙅‍♀️एक पल भूलू तुझे मैं कान्हा 

         ऐसा मैं सोच नहीं सकती 

         जो तू मुझ में ना हो साँवरा 

         क्या है फिर मेरी हस्ती 

         तेरे गुणों की माया गिरधर 

         सुमिरन करते मैं ना थकती  

         चलूं सदा उस राह पर नागर  👣

         जिस से हो कर तुझ तक पहुंचती 🦚🦋🦋🦚


https://amzn.to/3myy05j

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में