शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

कविता निर्भया पांचाली के द्वारा लिखी गई

उठो जागो भारत के लोगों 
जगा लो तुम अपने स्वाभिमान को 
क्यों केवल  जननी ही जागे 
रहे क्यों पिता और भाई सोते 
कहां गए वह समाज सुधारक 
गए कहां राममोहन और विद्यासागर 
जुल्मो के खिलाफ भुजा थी जिनकी फड़की 
करी खिलाफत फिर पूरे समाज की 
हुई सुरक्षित जिससे फिर हर अबला 
तुमसे तो अच्छा बैटिंक ही निकला 
था फिरंगी पर अपना निकला 
सती प्रथा को खत्म जो कर गया 
था हुमायूं भी एक विदेशी 
लगी देर पर पहुंचा वह भी 
रखी लाज उसने भी राखी की 
राह तक रहे तुम किस पल की 
क्यों नहीं कर्मवती आग से बचती 
नहीं पुरुषार्थ है किसी को मिटाना 
है पुरुषार्थ तो है जीवन दे जाना
ना उभार पा रहे अपनी बेटी बहनो को
नहीं दे पा रहे सुरक्षा तुम उनको 
जागो तुम अपने ही लोगों 
जैसे दहेज की आग बुझाई 
हर जलती नारी थी बचाई  
जैसे थी सती प्रथा मिटाई 
हर नारी थी लपटों से बचाई 
विधवा विवाह से अबला को उभारा 
वैसे ही अब कर्तव्य तुम्हारा 
लगी आग एक और बुझानी 
हर निर्भया तुमको है बचानी






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