जगा लो तुम अपने स्वाभिमान को
क्यों केवल जननी ही जागे
रहे क्यों पिता और भाई सोते
कहां गए वह समाज सुधारक
गए कहां राममोहन और विद्यासागर
जुल्मो के खिलाफ भुजा थी जिनकी फड़की
करी खिलाफत फिर पूरे समाज की
हुई सुरक्षित जिससे फिर हर अबला
तुमसे तो अच्छा बैटिंक ही निकला
था फिरंगी पर अपना निकला
सती प्रथा को खत्म जो कर गया
था हुमायूं भी एक विदेशी
लगी देर पर पहुंचा वह भी
रखी लाज उसने भी राखी की
राह तक रहे तुम किस पल की
क्यों नहीं कर्मवती आग से बचती
नहीं पुरुषार्थ है किसी को मिटाना
है पुरुषार्थ तो है जीवन दे जाना
ना उभार पा रहे अपनी बेटी बहनो को
नहीं दे पा रहे सुरक्षा तुम उनको
जागो तुम अपने ही लोगों
जैसे दहेज की आग बुझाई
हर जलती नारी थी बचाई
जैसे थी सती प्रथा मिटाई
हर नारी थी लपटों से बचाई
विधवा विवाह से अबला को उभारा
वैसे ही अब कर्तव्य तुम्हारा
लगी आग एक और बुझानी
हर निर्भया तुमको है बचानी
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