गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

कविता शरद पूर्णिमा

 शरद पूर्णिमा का सुधाकर 

किस किस का है ये आकर्षण 

खिलेगी जल में जाने कितनी ही कुमुदनी 

कितने चकोर की होगी इसकी चांदनी 

मधुर होगी आज न जाने कितनी ही खीर 

किस-किस पर बरसेगा सरस ज्योत्सना का नीर 

कितने सागर में उठाएगा आज यह ज्वार 

स्वयं इसे बांधेगा मात्र पृथ्वी का दुलार 🌷



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में