सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

समर्पण पद

 🤲हथेली का दीपक करूँ

    अंगुली की बाट बनाऊँ 

    प्रेम का तेल डालूँ 

    फिर दीपक जलाऊँ 

    तब आरती तेरी करूँ

    कान्हा तुझे रिझाऊँ 

    नेह का अँजन डालूं 

    तब पलक  बिठाऊँ 

    भक्ति की मेहंदी रचाऊँ 

    तब श्याम शरण जाऊं 

    बंधे फिर साँवरा जो मेरे 

    कभी ना छूट पाऊँ 🙌



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में