रविवार, 18 अक्तूबर 2020

मोदक जी

चली सवारी मूषक जी की 
बैठे इन पर एकदंत जी 
ढूंढने लगी नजरें फिर दोनों की 
इधर उधर कहीं हो मोदक जी 
ढूंढ ढूंढ कर नजर थकी दोनों की 
पर मिला नहीं उनको मोदक जी 
चारों ओर ढेर पिज्जा बर्गर का  
बची जगह तो डिब्बा था टिन का 
कहीं पड़े थे पास्ता मंचूरियन 
ढेर पड़े थे फूड अमेरिकन 
नहीं मिला जब उनको मोदक जी 
लगा फिर यही उन दोनों को जी 
आ गए लगता गलत है बस्ती 
नहीं है यह तो हिंदुस्तानी संस्कृति


   

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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में