मौन हूँ मैं,ये ना समझना पीड़ा नहीं
ये भी ना कहना उत्तरदायी तू नहीं
दिए जो घाव रिस रहें है अब तक
ये ना कहना इनमें हाथ तेरा नहीं
स्वाभिमान हुआ तुझसे ही घायल
तुझसे पसरा ये मौन सन्नाटा नहीं
ये ना कहना उठी जो आँधी मौन की
कण कण इसकी की तैयारी तूने नहीं
बने आज जो ये बवंडर विकराल
किया मौन को भी आह्लादित तूने नहीं
रौंद कर तेरे, कई खार समन्दरी
तब बना ये मरू विशाल नहीं
हुआ शांत गहन नितांत एकाकी
दबा भीतर इसके लाव उबाल नहीं
पर मिला जो तुझसे मौन उपहार मुझे
ये नहीं कि निखरा मेरा आत्मबल नहीं
टूटा था कण-कण हिय का जो सेतू
कैसे कह दूँ बंधा इस मौन मरू से नहीं
हुई थी बंजर देख शब्दों से यहाँ कैसे मानूँ
किया नव अंकुरण मौन ने नहीं
आज निखरा जो तेज मेरे भीतर का
कारण तुझ से मिला मौन है, तू नहीं
Dard ko Dard Se Gujar Jaane De
जवाब देंहटाएंDard ko Hi Dard Dava Ban Jaane De