सोमवार, 29 नवंबर 2021

मरवण

 ढ़ोला जी चुंदड़ी मंगा दो जयपुरियै सूँ 

ओढ़नी झीणी सरक सरक जाय

ओढ़े मरवण थारी पर

लाज हूँ मर मर जाय


थे नहीं आया ढ़ोला 
जो लगाई पीपल हुई घेर घुमेर 
लाखाँ री घरवाली छोटी थारी 
दो टका री मजदूरी बढ़ेर 


1 टिप्पणी:

  1. 🙏🏼बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति जी 🙏🏼शुभकामनाओं सहित शुभ संध्या मित्रों 🌱 🇮🇳

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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में