गुरुवार, 17 मार्च 2022

होली

कर जोरा जोरी अखियों की

खेली होली प्रीत की

उतर हृदय के आँगन में

फेकी गुलाल अपने रंग की


भर पिचकारी नेह की 

मेने डारि संग अबीर की

छुई तेरी हिय देहरी तो

हुई जीत मेरे प्रेम की




खेरी होरी 

ऐसी छोरी 

बरसाने की

संग कान्हा के 

गया कन्हाई 

फिर ना खेरी   

कभी होरी 

छोरी ऐसी

बरसाने की

तूने डारि 

भर पिचकारी

भिगी सारि

तेरे रंग में

रंग के सारी

मैं ना हारी

मेने जीती

तेरी प्रीति

जाऊँ तोपे 

मैं तो वारि


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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में