मेरी रोटी इन्तज़ार में तेरे
रोज सिकती है आज भी
लिपटी पड़ी रहती तेरी
भीगी यादों की नमी में
उसी चीर में जो लाया था तू
मेरे लिए फाड़ कर अपने हिस्से से
वो अधूरा हिस्सा आज भी है
इन्तज़ार में पूरा होने के
खींच लाती है प्यास बहुत दूर तक
तेरी एक बूँद आँखो की नमी के लिए
लांघ जाती हूँ समद सारे
समेटने उसे गिरने से पहले
इस धरा पर
हथेली मेरी होती है निहाल
रत्न मोती का पा कर
गुनगुनी धूप गुनगुनाती है
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