कई दिन हुए सूनी पड़ी दिल के गलियारों की पोल
ले आके आज बिछाते हैं जाजम तेरी मेरी हताई की
लगा के हुक्का सुकून से पैरवी करते हैं एक दूजे की
मैं करूँ तेरी नेकियों के सबूतों से
खिलाफत तेरी कमियों की
तू देना मेरे शिकवों को दलीलें मेरी चाहतों की
देखना तुझे ना जीता दूँ तो कहना मेरे दिल में तू नहीं
और रो ना दे तू हार पे अपनी
तो मान लेना तेरे दिल में, मैं नहीं
अगर तलाशेगा तू मुझे तो मिल जाऊँगी
तेरी थकन की सुकून भरी अंगड़ाइयों में
होगा जब तू हताश, निराश, परेशान तो
तुझमें जगी उम्मीद की छोटी सी किरण में
तेरे उस हर हारे हुए पल की जीत में
जो मिलती है तुझे तेरे दिल के सुकून में
छू लूँ तुझे
मैं बढ़ के
ना कर तय
दायरे हद के
धागे जो तेरे
हैं मन के
धागे वो मेरी
है मन्नत के
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