गुरुवार, 23 जून 2022

सुकून

कई दिन हुए सूनी पड़ी दिल के गलियारों की पोल 

ले आके आज बिछाते हैं जाजम तेरी मेरी हताई की 

लगा के हुक्का सुकून से पैरवी करते हैं एक दूजे की 

मैं करूँ तेरी नेकियों के सबूतों से 

खिलाफत तेरी कमियों की 

तू देना मेरे शिकवों को दलीलें मेरी चाहतों की

देखना तुझे ना जीता दूँ तो कहना मेरे दिल में तू नहीं

और रो ना दे तू हार पे अपनी 

तो मान लेना तेरे दिल में, मैं नहीं

अगर तलाशेगा तू मुझे तो मिल जाऊँगी 

तेरी थकन की सुकून भरी अंगड़ाइयों में

होगा जब तू हताश, निराश, परेशान तो

तुझमें जगी उम्मीद की छोटी सी किरण में

तेरे उस हर हारे हुए पल की जीत में

जो मिलती है तुझे तेरे दिल के सुकून में 

छू लूँ तुझे 

मैं बढ़ के 

ना कर तय 

दायरे हद के

धागे जो तेरे 

हैं मन के 

धागे वो मेरी 

है मन्नत के


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में