गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

Vijaydiwas 1971 (longevala)

 रख ना पाई अटूट 

धर्म की आड़ में सहस्त्र आहें जो पाक में रह गई

हुई माँ भी खंडित 

शांति की ओट में सिसकियाँ और बढ़ गई

उठी चिंगारी 

जुल्फी याह्या की लपट माँ के आंचल में लग गई 

लपट लोंगेवाला 

जो पहुँची देह सिंह की भी सुलग गई

जला कुल का दीप 

तले ले रक्त नयन ज्वाला वीरों की निकल गई

हुई सहाय धरा 

माँ बारूद टैंक भी निगल गई 

भड़काई ज्वाला

अरि ने जो निज बारूद में भी लग गई 

थार भँवर मझधार में नैया उनकी फंस गई 

उड़ा मारुत ऐसा 

दम लिया सिंहो ने सांस अरि की थम गई 

थामी मशाल 

शहीदों ने अब वो बंगबंधु में भी लग गई

चली मुक्तवाहिनी 

अगुवाई में उसकी बांग्ला बुलंद हुई 

बाँटा माँ को 

जिसने धरा उसकी ही बँट गई 

नई रोशनी नया प्रकाश ले 

स्वर्णिम किरणें बांग्ला की पूर्व में उदित हुई




1 टिप्पणी:

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में