शुक्रवार, 7 मई 2021

रवीन्द्रनाथ टैगोर

वनवाणी बनी प्रवाहिनी 

कर स्मरण बनफूल शिशु ने 

गीताली का 

लिया ज्ञान लिपिका का 

किया लेखन 

पथिक चलता रहा 

ले भग्न हृदय गाता रहा 

प्रभात संध्या संगीत 

नदी बहती रही 

कणिका क्षणिका कल्पना की 

ङलते रहे नैवेद्य 

निखरती रही कथा कवि कहानी 

विचित्रता से पत्रपुट हुए सभी 

परिशेष रहा ना 

शेषलेखा किसी का


घाट की कथा सुनाई 

पोस्ट मास्टर ने 

श्यामली को 

था भिखारिणी का 

कंकाल टिका था 

दान प्रतिदान 

संपत्ति समर्पण 

के गिन्नी त्याग पर 

एक रात छूटा स्वर्णमृग 

बनी विचारक 

जीवित और मृत की 

कर प्रायश्चित 

हुई महामाया से ऊपर 

छोड़ जय पराजय 

किया उद्धार स्वयं का 

ले शुभ दृष्टि कर्मफल की 

बनी संन्यासिनी वैष्णवी 

कर दर्पहरण 

लिया गुप्त धन ज्ञान का 

पूर्ण हुआ यज्ञ यज्ञेश्वर का


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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में