Veena Mawar Author
है धरा आज व्यथित
अंतर्मन शोक से
कर रही है विलाप
स्वयं ही क्रदन से
देख दशा मानव की
पीड़ित है खेद से
मानव था सच्चा सपूत
आज आह्लाद है पीड़ से
बन नासमझ
विकास की होड़ में
क्यूँ छला स्वयं को
अपने ही कर्म से
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