शुक्रवार, 26 मार्च 2021

महादेवी वर्मा


निहार रही 

अतीत के चलचित्र 

स्मृति की रेखाएं 

बना रही 

स्मृतिचित्र 

पथ के साथी संग 

गाए संध्या गीत 

कैसे बरसी 

नीर भरी बदली 

कैसे बीती दुख की यामा 

जली दीपशिखा 

एक क्षणदा में उभरी 

श्रृंखला की कड़ियां 

खुली गुल्लक 

निकला नीरजा रश्मि कर 

नीलांबर पर ले सप्तवर्ण 

की परिक्रमा नीलकंठ की 

अग्नि रेखाएं 

बनी स्मारिका 

आत्मिका से हो संधीनी 

ने बनाया मेरा परिवार 

हाँ बनाया रचना परिवार

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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में