रविवार, 21 फ़रवरी 2021

साम्राज्ञी

मैं साम्राज्ञी तेरे मन की 

फिर क्यूँ नहीं तू मेरे अधिकार क्षेत्र में 

क्यूँ होती वसूली तेरी जमीं की 

किसी और के हक में

क्यों जाता लगान तेरा किसी और के हिस्से में 

नहीं ये कि कर नहीं सकती 

परास्त मैं आक्रांताओं को

चाहूँ तो ले सकती पल में अपने हक को

कर सकती मुक्त पल में तेरी जमी को 

पर लौटेगा तब तू अधूरा,चाहती हूँ तुझे मैं पूरा 

लड़ना होगा खुद ही पड़ेगा बंधन तोड़ना खुद ही


होकर मुक्त आना होगा खुद ही


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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में