भक्तिमती मीराँ
नहीं लेखनी में ताब इतना
लिखे गुणगान मेड़तनी का
राव दूदा का गढ़ छोड़ा
छोड़ी मेवाड़ी शान
भगवा वेश किया धारण
छोड़ी रजवाड़ी आन
धरे पैर जमीन पर
उससे ही पहले दूदा
रखता अपनी हथेली
धरे पैर कांटो के वन पर
लहूलुहान पैर तली
धूप जली बरखा भीगी
ओढ़ी झीनी लोई
भर सर्दी में थी जो
मखमल में सोई
लगन लगी कृष्ण की
कृष्ण में ही खोई
जहर प्याला बना अमिय
सर्प बना गलहार
करी चाकरी कृष्ण की
कृष्ण ने की सहाय
बचाया जग तानो से
लिया खुद में समाय
पथ राखी मीराँ की
गोपाल करो
मेरी भी सहाय
भटकी मैं भी पथ
दीनदयाल
खङी बीच मझधार
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