सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

कृष्ण दिवानी

भक्तिमती मीराँ  

नहीं लेखनी में ताब इतना 

लिखे गुणगान मेड़तनी का 

राव दूदा का गढ़ छोड़ा 

छोड़ी मेवाड़ी शान 

भगवा वेश किया धारण 

छोड़ी रजवाड़ी आन 

धरे पैर जमीन पर 

उससे ही पहले दूदा 

रखता अपनी हथेली 

धरे पैर कांटो के वन पर  

लहूलुहान पैर तली  

धूप जली बरखा भीगी  

ओढ़ी झीनी लोई 

भर सर्दी में थी जो 

मखमल में सोई 

लगन लगी कृष्ण की 

कृष्ण में ही खोई

जहर प्याला बना अमिय

सर्प बना गलहार

करी चाकरी कृष्ण की

कृष्ण ने की सहाय

बचाया जग तानो से 

लिया खुद में समाय



पथ राखी मीराँ की

गोपाल करो 

मेरी भी सहाय

भटकी मैं भी पथ 

दीनदयाल 

खङी बीच मझधार 



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में