शनिवार, 26 दिसंबर 2020

कृष्ण पद

घनघोर अँधेरा है बाहर  

भीतर लौ ये किसकी है

बाहर पथ में काँटे हजार 

भीतर निष्कंटक राह किसकी है 

बाहर समस्या है अपार 

भीतर हल ज्योति किसकी है 

बाहर भव सागर है विशाल 

भीतर पतवार खैवय्या की है

बाहर रिश्ते है बेशुमार 

भीतर ङोरी कान्हा की है



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में