तू भूला राह मेरे मन की
किसी से क्या शिकवा करें
हम छू नहीं पाए तेरे मन को
खुद से बस यही गिला करें
जा किया आजाद
हमने तुझे खुद से
भूल जाएंगे गुजरे ही नहीं
कभी तेरी गलियों से
हम थे रैन बसेरा बस तेरा
चल दिए तुम सहर होते
के इतनी समझ तो है हमें
जाने वाले को रोका नहीं करते
कभी-कभी हम जानते हैं कि कुआं बहुत गहरा है
फिर भी हम उसकी गहराई में उतरते जाते हैं
शायद कुछ शीतलता पाने के लिए
पर जब हम डूबने लगते हैं
तब हमें एहसास होता है कि
जो पानी शीतलता का लालच देकर
हमे बुला रहा था
वही हमारी नासमझी पर हंस रहा है
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