बुधवार, 22 जून 2022

गिले शिकवे

तू भूला राह मेरे मन की

किसी से क्या शिकवा करें

हम छू नहीं पाए तेरे मन को

खुद से बस यही गिला करें 

जा किया आजाद 

हमने तुझे खुद से 

भूल जाएंगे गुजरे ही नहीं 

कभी तेरी गलियों से 

हम थे रैन बसेरा बस तेरा 

चल दिए तुम सहर होते 

के इतनी समझ तो है हमें 

जाने वाले को रोका नहीं करते

कभी-कभी हम जानते हैं कि कुआं बहुत गहरा है 

फिर भी हम उसकी गहराई में उतरते जाते हैं 

शायद कुछ शीतलता पाने के लिए 

पर जब हम डूबने लगते हैं 

तब हमें एहसास होता है कि

जो पानी शीतलता का लालच देकर 

हमे बुला रहा था

वही हमारी नासमझी पर हंस रहा है



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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में