Veena Mawar Author
जड़त्व के उस बिन्दु पर
जहाँ से नीचे जाने पर
होती असहनीय पीड़ाएँ
बढ़ा ली लौ लकड़ी ने
जब तक सूखी थी पीर सब
सीलन अश्रुओं ने भी
बढ़ने दी लौ की पराकाष्ठाएँ
नहीं अधिशेष सूखी पीर
अब तो बाकी हिय की
ना रही झोंकने को
सीलन भरी अश्रु धाराएँ
सूखी थी पीर बहुत ही अनुपम प्रयोग पढ़ने को मिला।रचना सुस्पष्ट मन को छूती, हृदय के अन्तिम छोर तक।बधाई और शुभकामनाएं।
सूखी थी पीर बहुत ही अनुपम प्रयोग पढ़ने को मिला।
जवाब देंहटाएंरचना सुस्पष्ट मन को छूती, हृदय के अन्तिम छोर तक।
बधाई और शुभकामनाएं।