बुधवार, 29 दिसंबर 2021

नीड़

आजा सांझ हुई, ढूंढे तुझे मेरी नज़र 

मैं पंछी तेरे नीड़ का, तू ही है मेरी डगर


तुम मेरे हर असफल प्रयास का सफल नतीजा हो 
जिंदगी की बेतरतीब व्यवस्था को जीने सलीका हो 

इतनी सारी गरम परतें भी 
नहीं रोक पा रही तेरी यादों की ठंड 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में