जाने क्यों बनाया तुमने रेत का महल मेरे साथ
जब बारिशों को तुम्हे खबर करनी ही थी
क्यूँ साहिल पर ले कर आए तुम मुझे
जब डूबा देने की तुम्हारी ही तैयारी थी
क्यूँ अंधेरों को चीरकर दी तुमने मुझे अंशु किरण
सूरज़ को बन बादल ढकने की नियत तुम्हारी थी
मेने ही क्यूँ बनाया वो महल साहिल पर तुम्हारे साथ
जब कि लहरों में डूबने की उसकी ही बारी थी
इंतजार है तो बस अब उस जोशे ज्वार का
महल के साथ डूब जाऊँ मेरी भी तैयारी थी
साथ तुम्हारे तुममें मिलकर,
जवाब देंहटाएंखो कर खोजना स्वयं को,
नियति रही मेरी सदा, तुम्हारे लिए,
जैसे दो नदियों का जल मिल फिर विलग
करने का असफल प्रयास,
जहां इच्छा अनिच्छा, झंझावतों के थपेड़ों से लड़कर
जीतकर कंगन बांधे, उबर आए निखर कर,
निश्छल।