सोमवार, 21 दिसंबर 2020

रेत का महल

जाने क्यों बनाया तुमने रेत का महल मेरे साथ 

जब बारिशों को तुम्हे खबर करनी ही थी 

क्यूँ साहिल पर ले कर आए तुम मुझे 

जब डूबा देने की तुम्हारी ही तैयारी थी 

क्यूँ अंधेरों को चीरकर दी तुमने मुझे अंशु किरण 

सूरज़ को बन बादल ढकने की नियत तुम्हारी थी 

मेने ही क्यूँ बनाया वो महल साहिल पर तुम्हारे साथ 

जब कि लहरों में डूबने की उसकी ही बारी थी 

इंतजार है तो बस अब उस जोशे ज्वार का 

महल के साथ डूब जाऊँ मेरी भी तैयारी थी

माँगू कुछ तुमसे तो क्या दे दोगे तुम 
मत करो याद मुझे भूल जाओ तुम
कर दो रिहा अपनी यादों से मुझे
बहुत दम घुट रहा है  मेरा वहाँ
चैन लौटा दोगे क्या मुझे तुम 
छूट गया है जो मेरा वहाँ            
अरमान लौटा दो मेरे
छूटे हैं मुझसे वहां
आखरी साँस 
भी मेरी मैं 
भूल गई 
हूँ वहाँ     
            


1 टिप्पणी:

  1. साथ तुम्हारे तुममें मिलकर,
    खो कर खोजना स्वयं को,
    नियति रही मेरी सदा, तुम्हारे लिए,
    जैसे दो नदियों का जल मिल फिर विलग
    करने का असफल प्रयास,
    जहां इच्छा अनिच्छा, झंझावतों के थपेड़ों से लड़कर
    जीतकर कंगन बांधे, उबर आए निखर कर,
    निश्छल।

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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में