पहले अपनाओ स्वदेश अपनाओ फिर स्वदेशी
पहेले भगाओ दुर्गुण स्वयं के फिर भगाओ विदेशी
आए कहां से जाना कहां है सब हैं इस धरा पे विदेशी
नहीं किया अंतर जब धरा ने तुममे आई भावना क्यूँ ऐसी
अपनाया सबको धरा ने नहीं पूछा क्या जात है किसकी
नहीं किया अंतर जब धरा ने मैं स्वदेशी तू परदेसी
कैसे होगए अलग-अलग वसुधा है जब एक ही सबकी
एक जननी के लाल अलग हो कर दी तुमने बात ही कैसी है
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