रविवार, 1 नवंबर 2020

धरा स्वदेशी


 पहले अपनाओ स्वदेश अपनाओ फिर स्वदेशी 

पहेले भगाओ दुर्गुण  स्वयं के फिर भगाओ विदेशी 

आए कहां से जाना कहां है सब हैं इस धरा पे विदेशी 

नहीं किया अंतर जब धरा ने तुममे आई भावना क्यूँ ऐसी 

अपनाया सबको धरा ने नहीं पूछा क्या जात है किसकी 

नहीं किया अंतर जब धरा ने मैं स्वदेशी तू परदेसी 

कैसे होगए अलग-अलग वसुधा है जब एक ही सबकी 

एक जननी के लाल अलग हो कर दी तुमने बात ही कैसी है

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दर्द भरी यादें

यादों का भी होता है पुनर्जन्म,  तर्पण कर देने के बाद भी होती है पुनरावर्तित स्मृति में जाती है जन, पुन:पुन:  हृदय के गर्भ  में