जुस्तजू-ए-क़फ़स में उलझी मेरी रूह
रूह_ए_हसरत में उलझी तेरी जुस्तजू
तुम बसे हो आँखो में सजना
काजल मना कर रहा है
तेरी आँखो मे नहीं सजना
आया बसंत है अंत
सूखी निराशाओं का
खिली बयार महकी इंद्रियां
जागी मन पुरवाई समस्त
कसक मेरे मन की
समझी तो होती कभी
क्या हमेशा अपनी ही
चाहते गिनाते रहे
ना भीग पाए कभी
मेरी आँखो की नमी से
हमेशा अपनी ही
मुस्कुराहटें दिखाते रहे
रिक्त हो हो कर ख्वाब मेरे
सदा तेरे ख्वाब सजाते रहे